हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.164.2

मंडल 10 → सूक्त 164 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 164
भ॒द्रं वै वरं॑ वृणते भ॒द्रं यु॑ञ्जन्ति॒ दक्षि॑णम् । भ॒द्रं वै॑वस्व॒ते चक्षु॑र्बहु॒त्रा जीव॑तो॒ मनः॑ ॥ (२)
जीवित व्यक्ति के मनोरथ विस्तृत, उत्तम एवं अभिलाषायोग्य वस्तु को चाहने वाले एवं उत्तम फल के इच्छुक होते हैं. यम अपने कल्याणकारी नेत्र से उसे देखते हैं. (२)
The desires of a living person are those who want to have a wide, good and desireful thing and want good fruit. Yama looks at him with his own welfare eyes. (2)