ऋग्वेद (मंडल 10)
परि॑ वो वि॒श्वतो॑ दध ऊ॒र्जा घृ॒तेन॒ पय॑सा । ये दे॒वाः के च॑ य॒ज्ञिया॒स्ते र॒य्या सं सृ॑जन्तु नः ॥ (७)
हे सर्वत्र स्थित देवो! मैं गाय के दूध, दही व घृत से तुम्हारी सेवा करता हूं जो यज्ञ के योग्य देव हैं, वे हमें गायरूप धन से मिलावें. (७)
Oh, god everywhere! I serve you with cow's milk, curd and ghee, those who are deities worthy of yajna, may they meet us with the money of the cow. (7)