हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.38.5

मंडल 10 → सूक्त 38 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 38
स्व॒वृजं॒ हि त्वाम॒हमि॑न्द्र शु॒श्रवा॑नानु॒दं वृ॑षभ रध्र॒चोद॑नम् । प्र मु॑ञ्चस्व॒ परि॒ कुत्सा॑दि॒हा ग॑हि॒ किमु॒ त्वावा॑न्मु॒ष्कयो॑र्ब॒द्ध आ॑सते ॥ (५)
हे अभिलाषापूरक इंद्र! हमने सुना है कि तुम स्वयं अपने बंधन काटने वाले, आशातीत बल देने वाले एवं अपने भक्त के प्रेरक हो. तुम यहां आओ और कुत्स के बंधन से स्वयं को छुड़ाओ. तुम्हारे समान व्यक्ति भुजद्वय का बंधन क्यों सहन करता है? (५)
Oh, this desireful Indra! We have heard that you are the one who cuts off your bonds, the one who gives hopeless strength and the motivators of your devotee. You come here and redeem yourself from the bondage of dogs. Why does a person like you bear the bondage of bhujdya? (5)