हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.53.5

मंडल 10 → सूक्त 53 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 53
पञ्च॒ जना॒ मम॑ हो॒त्रं जु॑षन्तां॒ गोजा॑ता उ॒त ये य॒ज्ञिया॑सः । पृ॒थि॒वी नः॒ पार्थि॑वात्पा॒त्वंह॑सो॒ऽन्तरि॑क्षं दि॒व्यात्पा॑त्व॒स्मान् ॥ (५)
पंचजन मेरे आह्वान को स्वीकार करें. भूमि से उत्पन्न एवं यज्ञपात्र देव मेरे अग्निहोत्र का सेवन करें. पृथ्वी हमें पार्थिव पाप तथा अंतरिक्ष हमें दिव्य पाप से बचावे. (५)
Panchjan accept my call. May the God of the land and yajnapatra consume my agnihotra. Earth saves us from earthly sin and space saves us from divine sin. (5)