ऋग्वेद (मंडल 10)
यत्ते॒ मरी॑चीः प्र॒वतो॒ मनो॑ ज॒गाम॑ दूर॒कम् । तत्त॒ आ व॑र्तयामसी॒ह क्षया॑य जी॒वसे॑ ॥ (६)
तुम्हारा जो मन दूर तक चारों ओर जाने वाली सूर्यकिरणों के पास गया है, उसे हम वापस लौटाते हैं. तुम इस संसार में निवास करने के लिए जीते हो. (६)
We return your mind which has gone far to the sun rays going around. You live to live in this world. (6)