हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.64.15

मंडल 10 → सूक्त 64 → श्लोक 15 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 64
वि षा होत्रा॒ विश्व॑मश्नोति॒ वार्यं॒ बृह॒स्पति॑र॒रम॑तिः॒ पनी॑यसी । ग्रावा॒ यत्र॑ मधु॒षुदु॒च्यते॑ बृ॒हदवी॑वशन्त म॒तिभि॑र्मनी॒षिणः॑ ॥ (१५)
बड़ों का पालन करने वाली, पर्याप्त स्तुति वाली, देवों की अधिक स्तुति करने वाली एवं सोमरस निचोड़ने के कारण महती वाणी सभी उत्तम धनों को व्याप्त करती हैं. विद्वान्‌ स्तोता अपनी स्तुतियों से देवों को यज्ञ का अभिलाषी बनाते हैं. (१५)
Because of the elders' observance, having enough praise, praising the gods more and squeezing the somras, the great voice pervades all the good wealth. The learned Hymns make the gods aspire for yajna through their praises. (15)