ऋग्वेद (मंडल 10)
स्याम॑ वो॒ मन॑वो दे॒ववी॑तये॒ प्राञ्चं॑ नो य॒ज्ञं प्र ण॑यत साधु॒या । आदि॑त्या॒ रुद्रा॒ वस॑वः॒ सुदा॑नव इ॒मा ब्रह्म॑ श॒स्यमा॑नानि जिन्वत ॥ (१२)
हे देव! हम मानव तुम्हें यज्ञ अर्पण करने वाले बनें. हमारे प्राचीन यज्ञ को तुम पूर्ण करो. हे आदित्यो, रुद्रपुत्र मरुतो एवं शोभन-दान वाले वसुओ! तुम इन उच्चरित स्तोत्रों को सुनो. (१२)
Oh, God! Let us humans be the ones who offer you yajna. You complete our ancient yajna. O Adityas, Rudraputra Maruto and Shobhan-daan wala vasuo! You listen to these raised hymns. (12)