ऋग्वेद (मंडल 10)
स्व॒स्ति नो॑ दि॒वो अ॑ग्ने पृथि॒व्या वि॒श्वायु॑र्धेहि य॒जथा॑य देव । सचे॑महि॒ तव॑ दस्म प्रके॒तैरु॑रु॒ष्या ण॑ उ॒रुभि॑र्देव॒ शंसैः॑ ॥ (१)
हे दिव्यगुण युक्त अग्नि! हम यज्ञकर्तताओं के लिए द्यावा-पृथिवी से लाकर कल्याण प्रदान करो. हे दर्शनीय अग्नि! हम तुम्हें प्राप्त करें. तुम अनेक प्रशंसनीय रक्षासाधनों से हमारी रक्षा करो. (१)
O agni of divine virtue! Let us bring from Dyava-Prithvivi to the yajnakartas and provide welfare. O glorious agni! We get you. You protect us with many admirable defense tools. (1)