हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.7.4

मंडल 10 → सूक्त 7 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 7
सि॒ध्रा अ॑ग्ने॒ धियो॑ अ॒स्मे सनु॑त्री॒र्यं त्राय॑से॒ दम॒ आ नित्य॑होता । ऋ॒तावा॒ स रो॒हिद॑श्वः पुरु॒क्षुर्द्युभि॑रस्मा॒ अह॑भिर्वा॒मम॑स्तु ॥ (४)
हे अग्नि! तुम्हारे विषय में हमारे द्वारा की गई स्तुतियां पूर्ण हुई हैं. हे नित्य होता व यज्ञयुक्त अग्नि! तुम हमारी यज्ञशाला में उपस्थित रहकर हमारी रक्षा करते हो. मैं तुम्हारे सहयोग से यज्ञकर्ता बनूं तथा लाल रंग के घोड़े एवं बहुत सा धन प्राप्त करूं, जिससे उत्तम दिवसों में तुम्हें हव्य मिल सके. (४)
O agni! Our praises about you have been fulfilled. It was a routine and a agni! You protect us by being present in our yajnashala. I will become a yajnakarta with your help and get red horses and a lot of money, so that you can get a havan in the best days. (4)