हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.76.6

मंडल 10 → सूक्त 76 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 76
भु॒रन्तु॑ नो य॒शसः॒ सोत्वन्ध॑सो॒ ग्रावा॑णो वा॒चा दि॒विता॑ दि॒वित्म॑ता । नरो॒ यत्र॑ दुह॒ते काम्यं॒ मध्वा॑घो॒षय॑न्तो अ॒भितो॑ मिथ॒स्तुरः॑ ॥ (६)
यशस्वी पाषाण हमारे लिए निचुड़ा हुआ सोमरस तैयार करें. वे स्तुति के तेजस्वी वचनों के द्वारा हमें उज्ज्वल सोमयाग में स्थापित करें. यज्ञकर्म के नेता ऋत्विज्‌ सोमयज्ञ में चारों ओर परस्पर शीघ्रता करते हुए एवं स्तोत्र बोलते हुए सोमरस निचोड़ते हैं. (६)
Prepare the successful stone for us the unsettled somras. They set us up in the bright Somayag by the stunning words of praise. The leader of the yajnakarma squeezes the somras in the Ritvij somayagna, hurrying around and speaking hymns. (6)