हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.85.15

मंडल 10 → सूक्त 85 → श्लोक 15 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 85
यदया॑तं शुभस्पती वरे॒यं सू॒र्यामुप॑ । क्वैकं॑ च॒क्रं वा॑मासी॒त्क्व॑ दे॒ष्ट्राय॑ तस्थथुः ॥ (१५)
हे जल के स्वामी अश्विनीकुमारो! जिस समय तुम सूर्या का वरण करने उसके समीप गए, उस समय तुम्हारा एक रथचक्र कहां था एवं तुम दान के लिए कहां स्थित थे? (१५)
O Lord of water Ashwinikumaro! At the time when you went to him to select surya, where was one of your chariot cycles and where were you located for charity? (15)