ऋग्वेद (मंडल 10)
त्वं ह॒ त्यदृ॑ण॒या इ॑न्द्र॒ धीरो॒ऽसिर्न पर्व॑ वृजि॒ना शृ॑णासि । प्र ये मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाम॒ युजं॒ न जना॑ मि॒नन्ति॑ मि॒त्रम् ॥ (८)
हे धीर इंद्र! तुम स्तोताओं को ऋण से छुड़ाते हो. जिस प्रकार तलवार पशुओं की बोटियां काटती है, उसी प्रकार तुम स्तोताओं के पापों को नष्ट करते हो. जो मूर्ख लोग वरुण और मित्र को धारण करने वाले एवं मित्रतुल्य यज्ञकर्म का लोप करते हैं, उन्हें भी इंद्र नष्ट करते हैं. (८)
O patient Indra! You redeem the psalms from debt. Just as the sword cuts the boats of animals, so you destroy the sins of the psalms. Indra also destroys those who wear Varuna and the friend and omit the sacrificial work. (8)