हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.91.5

मंडल 10 → सूक्त 91 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 91
तव॒ श्रियो॑ व॒र्ष्य॑स्येव वि॒द्युत॑श्चि॒त्राश्चि॑कित्र उ॒षसां॒ न के॒तवः॑ । यदोष॑धीर॒भिसृ॑ष्टो॒ वना॑नि च॒ परि॑ स्व॒यं चि॑नु॒षे अन्न॑मा॒स्ये॑ ॥ (५)
हे अग्नि! तुम्हारी किरणरूपी विभूतियां बरसने वाले मेघ की बिजली अथवा उषा की किरणों के समान जान पड़ती हैं. उस समय तुम ओषधियों और वनों को अपने मुख से भक्षण करने के लिए स्वयं उन्मुक्त जान पड़ते हो. (५)
O agni! Your ray-like personalities look like the lightning of the raining cloud or the rays of Usha. At that time you feel free to devour the herbs and forests with your mouth. (5)