हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.1.8

मंडल 2 → सूक्त 1 → श्लोक 8 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 1
त्वाम॑ग्ने॒ दम॒ आ वि॒श्पतिं॒ विश॒स्त्वां राजा॑नं सुवि॒दत्र॑मृञ्जते । त्वं विश्वा॑नि स्वनीक पत्यसे॒ त्वं स॒हस्रा॑णि श॒ता दश॒ प्रति॑ ॥ (८)
हे अग्नि! तुम यजमानों के पालनकर्ता हो. वे तुम्हें अपने घर में प्रकाशमान एवं अनुकूल चेतना वाला पाकर सुशोभित करते हैं. हे उत्तम सेवा वाले एवं समस्त हव्यों के स्वामी अग्नि! तुम हजारों, सैकड़ों और दसियों प्रकार के फल लोगों को देते हो. (८)
O agni! You are the lord of the hosts. They adorn you with a bright and friendly consciousness in your home. O agni, the best of service and the lord of all things! You give thousands, hundreds and tens of kinds of fruits to people. (8)