ऋग्वेद (मंडल 2)
त्वे इ॒न्द्राप्य॑भूम॒ विप्रा॒ धियं॑ वनेम ऋत॒या सप॑न्तः । अ॒व॒स्यवो॑ धीमहि॒ प्रश॑स्तिं स॒द्यस्ते॑ रा॒यो दा॒वने॑ स्याम ॥ (१२)
हे इंद्र! हम मेधावी तुम्हारे मन में स्थान प्राप्त करेंगे. कर्मफल की इच्छा से तुम्हारी सेवा करते हुए हम तुम्हारा आश्रय पाने के लिए स्तुति करते हैं. हम इसी समय तुम्हारे धनदान के पात्र बनें. (१२)
O Indra! We will get the bright spot in your mind. While serving you with the will of karmaphal, we praise you for getting shelter. Let us be eligible for your donation at this time. (12)