ऋग्वेद (मंडल 2)
यो जा॒त ए॒व प्र॑थ॒मो मन॑स्वान्दे॒वो दे॒वान्क्रतु॑ना प॒र्यभू॑षत् । यस्य॒ शुष्मा॒द्रोद॑सी॒ अभ्य॑सेतां नृ॒म्णस्य॑ म॒ह्ना स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (१)
हे मनुष्यो! जिसने उत्पन्न होते ही देवों एवं मनुष्यों में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपने वीर कर्म से देवों को विभूषित किया था, जिसके बल से धरती और आकाश डर गए थे और जो विशाल सेना के नायक थे, वही इंदर हैं. (१)
O men! He who, as soon as he was born, took the first place among the gods and men and adorned the gods with his heroic deeds, by the strength of which the earth and the sky were afraid, and who was the hero of the great army, he is the Inder. (1)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यः पृ॑थि॒वीं व्यथ॑माना॒मदृं॑ह॒द्यः पर्व॑ता॒न्प्रकु॑पिता॒ँ अर॑म्णात् । यो अ॒न्तरि॑क्षं विम॒मे वरी॑यो॒ यो द्यामस्त॑भ्ना॒त्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (२)
हे मनुष्यो! जिसने चंचल पृथ्वी को दृढ़ किया, क्रोधित पर्वतों को नियमित किया, विशाल अंतरिक्ष को बनाया एवं आकाश को स्थिर किया, वही इंद्र हैं. (२)
O men! He who strengthened the fickle earth, regularized the angry mountains, created vast space and stabilized the sky, he is Indra. (2)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यो ह॒त्वाहि॒मरि॑णात्स॒प्त सिन्धू॒न्यो गा उ॒दाज॑दप॒धा व॒लस्य॑ । यो अश्म॑नोर॒न्तर॒ग्निं ज॒जान॑ सं॒वृक्स॒मत्सु॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (३)
हे मनुष्यो! जिसने वृत्र को मारकर सात नदियों को बहाया, जिसने बल असुर द्वारा रोकी गई गायों को स्वतंत्र किया, जिसने दो बादलों के घर्षण से बिजली रूपी अग्नि को उत्पन्न किया एवं जो युद्धस्थल में शत्रुओं का विनाश करता है, वही इंद्र हें. (३)
O men! The one who killed the Vritra and swept away the seven rivers, who liberated the cows stopped by the force asura, who produced the electric agni from the friction of the two clouds and who destroys the enemies in the battlefield is Indra. (3)
ऋग्वेद (मंडल 2)
येने॒मा विश्वा॒ च्यव॑ना कृ॒तानि॒ यो दासं॒ वर्ण॒मध॑रं॒ गुहाकः॑ । श्व॒घ्नीव॒ यो जि॑गी॒वाँल्ल॒क्षमाद॑द॒र्यः पु॒ष्टानि॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (४)
हे मनुष्यो! जिसने नश्वर संसार को बनाया है एवं जिसने विनाशक असुर को अंधेरी गुहा में बंद किया, जिस प्रकार बहेलिया मारे हुए पशु को ले जाता है, उसी प्रकार जो जीते हुए शत्रु का सब धन अधिकार में कर लेता है, वही इंदर हैं. (४)
O men! He who created the mortal world and who locked the destructive asura in the dark cavity, just as Behelia takes away the slain animal, so he who takes possession of all the wealth of the conquering enemy, he is the Inder. (4)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यं स्मा॑ पृ॒च्छन्ति॒ कुह॒ सेति॑ घो॒रमु॒तेमा॑हु॒र्नैषो अ॒स्तीत्ये॑नम् । सो अ॒र्यः पु॒ष्टीर्विज॑ इ॒वा मि॑नाति॒ श्रद॑स्मै धत्त॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (५)
हे मनुष्यो! जिसके विषय में लोग पूछते हैं कि वह कहां है? जिसके विषय में लोग कहते हैं कि वह नहीं है. जो शत्रु की संपत्ति को नष्ट करता है, वही इंद्र हैं. उनके प्रति श्रद्धा करो. (५)
O men! About whom people ask where he is? About which people say that he is not. The one who destroys the enemy's property is Indra. Have faith in them. (5)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यो र॒ध्रस्य॑ चोदि॒ता यः कृ॒शस्य॒ यो ब्र॒ह्मणो॒ नाध॑मानस्य की॒रेः । यु॒क्तग्रा॑व्णो॒ योऽवि॒ता सु॑शि॒प्रः सु॒तसो॑मस्य॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (६)
हे मनुष्यो! जो संपन्न व्यक्ति को धन देता है, जो दीनदुर्बल अथवा प्रार्थना करते हुए स्तोता को धन प्रदान करता है, जो शोभन हनु वाला, हाथ में पत्थर धारण करने वाले तथा सोम निचोड़ने वाले यजमान की रक्षा करता है, वही इंद्र हैं. (६)
O men! The one who gives wealth to the affluent person, who gives wealth to the saint while praying, who protects the host with Shobhan Hanu, who holds a stone in his hand and squeezes soma, is Indra. (6)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यस्याश्वा॑सः प्र॒दिशि॒ यस्य॒ गावो॒ यस्य॒ ग्रामा॒ यस्य॒ विश्वे॒ रथा॑सः । यः सूर्यं॒ य उ॒षसं॑ ज॒जान॒ यो अ॒पां ने॒ता स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (७)
हे मनुष्यो! समस्त अश्च, गाएं, गांव एवं रथ जिसके अधिकार में हैं, जिसने सूर्य एवं उषा को उत्पन्न किया और जो जल को बहने की प्रेरणा देता है, वही इंद्र हैं. (७)
O men! All the assh, the cows, the villages and the chariots are in whose possession, he who created the sun and usha, and who inspires the water to flow, is indra. (7)
ऋग्वेद (मंडल 2)
यं क्रन्द॑सी संय॒ती वि॒ह्वये॑ते॒ परेऽव॑र उ॒भया॑ अ॒मित्राः॑ । स॒मा॒नं चि॒द्रथ॑मातस्थि॒वांसा॒ नाना॑ हवेते॒ स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (८)
हे मनुष्यो! शब्द करती हुई दो विरोधी सेनाएं, श्रेष्ठ एवं निम्न दोनों प्रकार के शत्रु एवं एक ही प्रकार के दो रथों पर बैठे हुए लोग जिसे अपनी सहायता के लिए बुलाते हैं, वही इंद्र हैं. (८)
O men! The two opposing armies, both superior and lower, and the people sitting on two chariots of the same type, are the ones whom they call to help them, that is Indra. (8)