ऋग्वेद (मंडल 2)
यः सु॑न्व॒ते पच॑ते दु॒ध्र आ चि॒द्वाजं॒ दर्द॑र्षि॒ स किला॑सि स॒त्यः । व॒यं त॑ इन्द्र वि॒श्वह॑ प्रि॒यासः॑ सु॒वीरा॑सो वि॒दथ॒मा व॑देम ॥ (१५)
हे दुर्धर्ष इंद्र! तुम सोमरस निचोड़ने वाले एवं पुरोडाश पकाने वाले यजमान की रक्षा करते हो, अतः तुम सच्चे हो. हम प्रिय एवं वीर पुत्रों से युक्त होकर बहुत दिनों तक तुम्हारी स्तुतियों का पाठ करेंगे. (१५)
O You Are The Terrible Indra! You protect the host who squeezes the somras and cooks the purodash, so you are truthful. We will recite your praises for many days, consisting of beloved and brave sons. (15)