ऋग्वेद (मंडल 2)
यस्मा॒न्न ऋ॒ते वि॒जय॑न्ते॒ जना॑सो॒ यं युध्य॑माना॒ अव॑से॒ हव॑न्ते । यो विश्व॑स्य प्रति॒मानं॑ ब॒भूव॒ यो अ॑च्युत॒च्युत्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥ (९)
हे मनुष्यो! जिसकी सहायता के बिना लोगों को विजय नहीं मिलती, युद्ध करते हुए लोग जिसे अपनी रक्षा के लिए बुलाते हैं, जो संसार के प्रतिनिधि बने थे एवं स्थिर पर्वत आदि को भी चंचल कर देते हैं, वही इंद्र हैं. (९)
O men! Without whose help the people do not get victory, the one whom the people call to protect themselves while fighting, who became the representative of the world and also make the stable mountains, etc., fickle, is indra. (9)