ऋग्वेद (मंडल 2)
अध्व॑र्यवो॒ यः श॒तं शम्ब॑रस्य॒ पुरो॑ बि॒भेदाश्म॑नेव पू॒र्वीः । यो व॒र्चिनः॑ श॒तमिन्द्रः॑ स॒हस्र॑म॒पाव॑प॒द्भर॑ता॒ सोम॑मस्मै ॥ (६)
हे अध्वर्युजनो! जिन इंद्र ने शंबर असुर की प्राचीन सौ नगरियों को वज्र द्वारा नष्ट-भ्रष्ट कर दिया एवं जिन्होंने वर्ची के सौ हजार पुत्रों को मारकर एक साथ ही धरती पर गिरा दिया, उन्हीं इंद्र के लिए सोम ले आओ. (६)
O adhwaryujano! Bring soma for indra who destroyed and corrupted the ancient hundred cities of Sambar Asura with thunderbolt and who killed a hundred thousand sons of Varchi and threw them down on the earth simultaneously. (6)