हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
प्रा॒ता रथो॒ नवो॑ योजि॒ सस्नि॒श्चतु॑र्युगस्त्रिक॒शः स॒प्तर॑श्मिः । दशा॑रित्रो मनु॒ष्यः॑ स्व॒र्षाः स इ॒ष्टिभि॑र्म॒तिभी॒ रंह्यो॑ भूत् ॥ (१)
स्तुतियुक्त एवं शुद्ध यज्ञ हम लोगों ने प्रातःकाल आरंभ किया है. चार पत्थरों, तीन स्वरों, सात छंदों तथा दस पात्रों वाला यह यज्ञ मानवों का हितकारक एवं स्वर्ग देने वाला है वह मनोहर स्तुतियों एवं हवनों द्वारा प्रसिद्ध होगा. (१)
We have started a praiseful and pure yajna in the morning. This yajna with four stones, three vowels, seven verses and ten characters is beneficial and heaven-giving to human beings, it will be famous with beautiful praises and havans. (1)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
सास्मा॒ अरं॑ प्रथ॒मं स द्वि॒तीय॑मु॒तो तृ॒तीयं॒ मनु॑षः॒ स होता॑ । अ॒न्यस्या॒ गर्भ॑म॒न्य ऊ॑ जनन्त॒ सो अ॒न्येभिः॑ सचते॒ जेन्यो॒ वृषा॑ ॥ (२)
मानवों के लिए उत्तम फल देने वाला यज्ञ इंद्र के लिए, प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय सवन में पूरा हुआ है. ऋत्विजों ने यज्ञ को धरती के गर्भ के रूप में उत्पन्न किया है. कामवर्षक एवं विजयदाता यज्ञ देवों के साथ मिल जाता है. (२)
The yajna, which gives the best results for humans, has been completed for Indra, in the first, second and third savan. The Ritvijas have created the yajna as the womb of the earth. The workman and the conqueror get along with the yajna devas. (2)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
हरी॒ नु कं॒ रथ॒ इन्द्र॑स्य योजमा॒यै सू॒क्तेन॒ वच॑सा॒ नवे॑न । मो षु त्वामत्र॑ ब॒हवो॒ हि विप्रा॒ नि री॑रम॒न्यज॑मानासो अ॒न्ये ॥ (३)
नवीन स्तुति रूपी वचनों के साथ इंद्र के रथ में हरि नामक अश्वों को इसलिए जोड़ा गया है कि इंद्र शीघ्र आ सकें. इस यज्ञ में बहुत से बुद्धिमान्‌ स्तोता हैं. हे इंद्र! दूसरे यजमान तुम्हें अधिक प्रसन्न नहीं कर सकेंगे. (३)
With the words of new praise, the horses named Hari have been added to Indra's chariot so that Indra can come soon. There are many wise hymns in this yajna. O Indra! Other hosts won't be able to make you happier. (3)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
आ द्वाभ्यां॒ हरि॑भ्यामिन्द्र या॒ह्या च॒तुर्भि॒रा ष॒ड्भिर्हू॒यमा॑नः । आष्टा॒भिर्द॒शभिः॑ सोम॒पेय॑म॒यं सु॒तः सु॑मख॒ मा मृध॑स्कः ॥ (४)
हे इंद्र! होताओं द्वारा बुलाए जाने पर तुम दो, चार, छह, आठ या दस हरि नामक अश्चों द्वारा सोमरस पीने के लिए आओ. हे शोभन धनशाली इंद्र! यह सोम तुम्हारे निमित्त प्रस्तुत है, इसे नष्ट मत करना. (४)
O Indra! When called by the hotas you come to drink the somras by the called two, four, six, eight or ten Hari. O Shobhan, the rich Indra! This mon is presented for you, don't destroy it. (4)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
आ विं॑श॒त्या त्रिं॒शता॑ याह्य॒र्वाङा च॑त्वारिं॒शता॒ हरि॑भिर्युजा॒नः । आ प॑ञ्चा॒शता॑ सु॒रथे॑भिरि॒न्द्रा ष॒ष्ट्या स॑प्त॒त्या सो॑म॒पेय॑म् ॥ (५)
हे इंद्र! सोमपान के लिए उत्तम गति वाले बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ अथवा सत्तर घोड़ों द्वारा हमारे सामने आओ. (५)
O Indra! Come before us by twenty, thirty, forty, fifty, sixty or seventy horses of the best speed to the Sompan. (5)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
आशी॒त्या न॑व॒त्या या॑ह्य॒र्वाङा श॒तेन॒ हरि॑भिरु॒ह्यमा॑नः । अ॒यं हि ते॑ शु॒नहो॑त्रेषु॒ सोम॒ इन्द्र॑ त्वा॒या परि॑षिक्तो॒ मदा॑य ॥ (६)
हे इंद्र! अस्सी, नब्बे एवं सौ हरि नामक अश्चों द्वारा चलकर हमारे सामने आओ. शुनहोत्र नामक पात्रों में तुम्हारे आनंद के लिए सोम रखा हुआ है. (६)
O Indra! Walk before us by the ashes of eighty, ninety and hundred hari. In the characters called Shunhotra, som is kept for your enjoyment. (6)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
मम॒ ब्रह्मे॑न्द्र या॒ह्यच्छा॒ विश्वा॒ हरी॑ धु॒रि धि॑ष्वा॒ रथ॑स्य । पु॒रु॒त्रा हि वि॒हव्यो॑ ब॒भूथा॒स्मिञ्छू॑र॒ सव॑ने मादयस्व ॥ (७)
हे इंद्र! मेरी स्तुति को लक्षित करके आओ एवं अपने विश्वव्यापी हरि नामक घोड़ों को रथ के आगे जोड़ो. हे शूर! तुम्हें बहुत से यजमान बुलाते हैं. तुम इस यज्ञ में आकर प्रसन्न बनो. (७)
O Indra! Aim at my praise and add your worldwide horses named Hari to the front of the chariot. Oh, Shur! You are called by many hosts. Be happy to come to this yagna. (7)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 18
न म॒ इन्द्रे॑ण स॒ख्यं वि यो॑षद॒स्मभ्य॑मस्य॒ दक्षि॑णा दुहीत । उप॒ ज्येष्ठे॒ वरू॑थे॒ गभ॑स्तौ प्रा॒येप्रा॑ये जिगी॒वांसः॑ स्याम ॥ (८)
इंद्र से मेरी मित्रता कभी न टूटे. इंद्र की दक्षिणा मुझे मनचाहा फल दे. हम इंद्र के विपत्तिनाशक उत्तम बाहुओं के समीप स्थित हैं. हम प्रत्येक युद्ध में विजय पावें. (८)
Never break my friendship with Indra. Give me the desired fruit of Indra's dakshina. We are located near the best arms of Indra. We win every war. (8)
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