ऋग्वेद (मंडल 2)
नू॒नं सा ते॒ प्रति॒ वरं॑ जरि॒त्रे दु॑ही॒यदि॑न्द्र॒ दक्षि॑णा म॒घोनी॑ । शिक्षा॑ स्तो॒तृभ्यो॒ माति॑ ध॒ग्भगो॑ नो बृ॒हद्व॑देम वि॒दथे॑ सु॒वीराः॑ ॥ (९)
हे इंद्र! तुम्हारी जो धनयुक्त दक्षिणा स्तुतिकर्तता की अभिलाषा पूर्ण करती है, वह हमें प्राप्त हो. हे सेवनीय इंद्र! हम स्तोताओं को छोड़कर वह दक्षिणा अन्य किसी को मत देना. हम उत्तम पुत्र-पौत्रादि प्राप्त करके इस यज्ञ में तुम्हारी बहुत स्तुति करेंगे. (९)
O Indra! May we receive the rich south that fulfills your desire for praise. O pure Indra! We don't give that dakshina to anyone other than the psalms. We will praise you a lot in this yajna by getting the best son and grandson. (9)