हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.19.4

मंडल 2 → सूक्त 19 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 19
सो अ॑प्र॒तीनि॒ मन॑वे पु॒रूणीन्द्रो॑ दाशद्दा॒शुषे॒ हन्ति॑ वृ॒त्रम् । स॒द्यो यो नृभ्यो॑ अत॒साय्यो॒ भूत्प॑स्पृधा॒नेभ्यः॒ सूर्य॑स्य सा॒तौ ॥ (४)
इंद्र ने हव्य देने वाले यजमान को असंख्य उत्तम धन दिया तथा वृत्र नामक असुर को मार डाला. सूर्य को प्राप्त करने के लिए जब स्तोताओं में परस्पर स्पर्धा हुई तो इंद्र ने उसका कारण बनकर सबको सहारा दिया. (४)
Indra gave innumerable good money to the host who gave the havya and killed the asura named Vritra. When there was a competition among the stotas to get the sun, Indra supported everyone by being the reason for it. (4)