हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.23.3

मंडल 2 → सूक्त 23 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 23
आ वि॒बाध्या॑ परि॒राप॒स्तमां॑सि च॒ ज्योति॑ष्मन्तं॒ रथ॑मृ॒तस्य॑ तिष्ठसि । बृह॑स्पते भी॒मम॑मित्र॒दम्भ॑नं रक्षो॒हणं॑ गोत्र॒भिदं॑ स्व॒र्विद॑म् ॥ (३)
हे बृहस्पति! तुम चारों ओर के निंदकों और अंधकार को समाप्त करके प्रकाशयुक्त, यज्ञ प्राप्त कराने वाले, भयानक शत्रुओं का नाश करने वाले, राक्षसों के हंता, मेघ को भिन्न करने वाले एवं स्वर्ग प्राप्त कराने वाले रथ में बैठते हो. (३)
O Jupiter! You sit in a chariot that brings out the blasphemies and darkness around you, with light, of yajna, of destroying terrible enemies, of demons, of separating the cloud, and of attaining heaven. (3)