हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.24.13

मंडल 2 → सूक्त 24 → श्लोक 13 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 24
उ॒ताशि॑ष्ठा॒ अनु॑ श‍ृण्वन्ति॒ वह्न॑यः स॒भेयो॒ विप्रो॑ भरते म॒ती धना॑ । वी॒ळु॒द्वेषा॒ अनु॒ वश॑ ऋ॒णमा॑द॒दिः स ह॑ वा॒जी स॑मि॒थे ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ॥ (१३)
ब्रह्मणस्पति के शीघ्रगामी घोड़े हमारे स्तोत्र को सुनते हैं. सभ्य एवं बुद्धिमान्‌ अध्वर्यु सुंदर स्तोत्रों द्वारा हव्य प्रदान करते हैं. वह प्रबल राक्षसों से द्वेष करने वाले, अपनी इच्छा से ऋण स्वीकार करने एवं अन्न के स्वामी हैं. वे युद्ध में हमारा हव्य स्वीकार करें. (१३)
The early horses of Brahmanaspati listen to our hymns. Civilized and intelligent adhwaryu is provided by beautiful hymns. He is the master of strong demons, who accepts debts of his own free will, and the lord of food. Let them accept our speech in the war. (13)