हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.24.5

मंडल 2 → सूक्त 24 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 24
सना॒ ता का चि॒द्भुव॑ना॒ भवी॑त्वा मा॒द्भिः श॒रद्भि॒र्दुरो॑ वरन्त वः । अय॑तन्ता चरतो अ॒न्यद॑न्य॒दिद्या च॒कार॑ व॒युना॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ॥ (५)
हे ऋत्विजो! तुम्हारे कल्याण के लिए ही बृहस्पति ने नित्य एवं विचित्र ज्ञान से प्रतिमान और प्रतिवर्ष होने वाली जलवर्षा का द्वार भिन्न किया था. बृहस्पति ने इस ज्ञान को मंत्र का विषय बनाया, जिससे धरती और आकाश एक-दूसरे को प्रसन्न करते रहें. (५)
Hey Ritvijo! It was for your welfare that Jupiter had separated the pattern from the constant and strange knowledge and the door of the annual flood. Jupiter made this knowledge a matter of mantra, so that the earth and the sky could keep pleasing each other. (5)