ऋग्वेद (मंडल 2)
तं वः॒ शर्धं॒ मारु॑तं सुम्न॒युर्गि॒रोप॑ ब्रुवे॒ नम॑सा॒ दैव्यं॒ जन॑म् । यथा॑ र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नशा॑महा अपत्य॒साचं॒ श्रुत्यं॑ दि॒वेदि॑वे ॥ (११)
हे मरुद्गण! हम सुख की इच्छा से नमस्कार द्वारा तुम्हारी दिव्य, उत्पन्न तथा सम्मिलित शक्ति की प्रशंसा करते हैं. हम उससे वीर संतान पाकर प्रतिदिन उत्तम धन का उपभोग कर सकें. (११)
O deserters! We admire your divine, generated and inclusive power by greeting the desire for happiness. We can get a heroic child from him and consume the best money every day. (11)