ऋग्वेद (मंडल 2)
बृह॑स्पते॒ तपु॒षाश्ने॑व विध्य॒ वृक॑द्वरसो॒ असु॑रस्य वी॒रान् । यथा॑ ज॒घन्थ॑ धृष॒ता पु॒रा चि॑दे॒वा ज॑हि॒ शत्रु॑म॒स्माक॑मिन्द्र ॥ (४)
हे बृहस्पति! वज्र के समान संतापकारी एवं अस्त्र के द्वारा बंद करने वाले असुर के पुत्रों का नाश करो. हे इंद्र! तुमने प्राचीनकाल में हमारे शत्रुओं को जिस प्रकार नष्ट किया था, उसी प्रकार इस समय शत्रुओं का नाश करो. (४)
O Jupiter! Destroy the sons of the asuras who are as angry as thunderbolts and who lock them with weapons. O Indra! Just as you destroyed our enemies in ancient times, so destroy your enemies at this time. (4)