हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.4.5

मंडल 2 → सूक्त 4 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 4
आ यन्मे॒ अभ्वं॑ व॒नदः॒ पन॑न्तो॒शिग्भ्यो॒ नामि॑मीत॒ वर्ण॑म् । स चि॒त्रेण॑ चिकिते॒ रंसु॑ भा॒सा जु॑जु॒र्वाँ यो मुहु॒रा युवा॒ भूत् ॥ (५)
मेरे स्तोता अग्नि के महत्त्व की स्तुति करते हैं. वे मेरे रूप की कामना करने वाले ऋत्विजों को अपना रंग दिखाते हैं. वे रमणीय हव्य के निमित्त विचित्र दीप्ति से पहचाने जाते हैं एवं बूढ़े होकर भी बार-बार जवान बन जाते हैं. (५)
My hymns praise the importance of agni. They show their color to the ritwijs who wish for my look. They are identified with the strange glow for the sake of delightful ness and become young again and again even when they are old. (5)