हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.15.1

मंडल 3 → सूक्त 15 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 15
वि पाज॑सा पृ॒थुना॒ शोशु॑चानो॒ बाध॑स्व द्वि॒षो र॒क्षसो॒ अमी॑वाः । सु॒शर्म॑णो बृह॒तः शर्म॑णि स्याम॒ग्नेर॒हं सु॒हव॑स्य॒ प्रणी॑तौ ॥ (१)
हे अग्नि! विस्तीर्ण तेज द्वारा अत्यंत दीप्त तुम हमारे शत्रुओं तथा रोगरहित राक्षसों का विनाश करो. मैं सुखदाता, महान्‌, एवं उत्तम आह्वान वाले अग्नि की सुखद रक्षा में रहूंगा. (१)
O agni! You, who are extremely illuminated by the vast brightness, destroy our enemies and our unimpressed demons. I will be in the pleasant defense of a agni that is pleasant, great, and of good calling. (1)