हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.19.1

मंडल 3 → सूक्त 19 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 19
अ॒ग्निं होता॑रं॒ प्र वृ॑णे मि॒येधे॒ गृत्सं॑ क॒विं वि॑श्व॒विद॒ममू॑रम् । स नो॑ यक्षद्दे॒वता॑ता॒ यजी॑यान्रा॒ये वाजा॑य वनते म॒घानि॑ ॥ (१)
हम देवस्तुतिकारक, सर्वज्ञ एवं अमूढ़ अग्नि को इस यज्ञ में होता वरण करते हैं. वह अतिशय यज्ञपात्र होकर हमारे कल्याण के लिए देव संबंधी यज्ञ करें तथा धन व अन्न देने के लिए हमारा हव्य स्वीकार करें. (१)
We choose the godly, omniscient and infinite agni in this yajna. He should perform the yajna related to God for our welfare and accept our vow to give money and food. (1)