हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.2.12

मंडल 3 → सूक्त 2 → श्लोक 12 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 2
वै॒श्वा॒न॒रः प्र॒त्नथा॒ नाक॒मारु॑हद्दि॒वस्पृ॒ष्ठं भन्द॑मानः सु॒मन्म॑भिः । स पू॑र्व॒वज्ज॒नय॑ञ्ज॒न्तवे॒ धनं॑ समा॒नमज्मं॒ पर्ये॑ति॒ जागृ॑विः ॥ (१२)
स्तोताओं द्वारा स्तुति किए जाते हुए वैश्वानर अग्नि चिरंतन के समान अंतरिक्ष की पीठ रूप स्वर्ग पर आरोहण करते हैं. वे प्राचीन ऋषियों के समान ही स्तुतिकर्तता यजमान को धन देते हुए सदा प्रबुद्ध रहकर सूर्य के रूप में देवों की तरह आकाशरूपी मार्ग पर घूमते हैं. (१२)
Praised by the Psalms, The Vaishnavars ascend to heaven as the back of space like agni chirantan. They, like the ancient sages, roam the path of the sky like the gods, always being enlightened, giving money to the host of praise. (12)