ऋग्वेद (मंडल 3)
न॒म॒स्यत॑ ह॒व्यदा॑तिं स्वध्व॒रं दु॑व॒स्यत॒ दम्यं॑ जा॒तवे॑दसम् । र॒थीरृ॒तस्य॑ बृह॒तो विच॑र्षणिर॒ग्निर्दे॒वाना॑मभवत्पु॒रोहि॑तः ॥ (८)
नेता, महान् एवं यज्ञ को देखने वाले अग्नि देवों के सामने स्थापित हुए थे. देवों को हव्य देने वाले, शोभन यज्ञयुक्त, घरों के लिए हितकारक एवं सभी प्राणियों को जानने वाले अग्नि की सेवा करो. (८)
The leaders were established in front of the great and the agni gods who saw the yajna. Serve the agni that gives love to the gods, with shobhan yagya, beneficial for the houses and knowing all beings. (8)