हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.36.4

मंडल 3 → सूक्त 36 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 36
म॒हाँ अम॑त्रो वृ॒जने॑ विर॒प्श्यु१॒॑ग्रं शवः॑ पत्यते धृ॒ष्ण्वोजः॑ । नाह॑ विव्याच पृथि॒वी च॒नैनं॒ यत्सोमा॑सो॒ हर्य॑श्व॒मम॑न्दन् ॥ (४)
महान्‌ युद्ध में शत्रुओं को ललकारने वाले एवं शत्रुपराभवकारी इंद्र का उग्र बल तथा पराक्रमपूर्ण ओज सब जगह फैलता है. जब हरि नामक अश्वों वाले इंद्र को सोमरस प्रसन्न करता है, उस समय धरती और आकाश कोई भी इंद्र को व्याप्त नहीं कर पाते. (४)
In the Great War, the fierce force and mighty power of Indra, who challenges the enemies and the enemy, spreads everywhere. When someras please Indra with horses called Hari, at that time the earth and the sky are not able to cover any Indra. (4)