ऋग्वेद (मंडल 3)
पु॒रु॒ष्टु॒तस्य॒ धाम॑भिः श॒तेन॑ महयामसि । इन्द्र॑स्य चर्षणी॒धृतः॑ ॥ (४)
अनेक लोगों की स्तुति के पात्र, असीम तेज से युक्त एवं मनुष्यों के धारणकर्ता इंद्र की हम स्तुति करते हैं. (४)
We praise Indra, the character of praise of many people, the possessor of infinite brightness and the possessor of human beings. (4)