हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.43.3

मंडल 3 → सूक्त 43 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 43
आ नो॑ य॒ज्ञं न॑मो॒वृधं॑ स॒जोषा॒ इन्द्र॑ देव॒ हरि॑भिर्याहि॒ तूय॑म् । अ॒हं हि त्वा॑ म॒तिभि॒र्जोह॑वीमि घृ॒तप्र॑याः सध॒मादे॒ मधू॑नाम् ॥ (३)
हे देव इंद्र! हमारे अन्न बढ़ाने वाले यज्ञ में तुम प्रसन्न चित्त से घोड़ों के साथ आओ. हम घृतयुक्त अन्न को हविरूप में धारण करके सोम पीने के स्थान पर स्तुतियों द्वारा तुम्हें बार-बार बुलाते हैं. (३)
O God Indra! In our food-enhancing yajna, you come with horses with a happy heart. We take the disgusting food in the form of a havid form and call you again and again with praises instead of drinking the mon. (3)