हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.5.2

मंडल 3 → सूक्त 5 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 5
प्रेद्व॒ग्निर्वा॑वृधे॒ स्तोमे॑भिर्गी॒र्भिः स्तो॑तॄ॒णां न॑म॒स्य॑ उ॒क्थैः । पू॒र्वीरृ॒तस्य॑ सं॒दृश॑श्चका॒नः सं दू॒तो अ॑द्यौदु॒षसो॑ विरो॒के ॥ (२)
जो पूज्य अग्नि स्तोताओं के वाक्यों, स्तोत्रों और मंत्रों से बढ़ते हैं, वे ही देवदूत अग्नि यज्ञो में सूर्य के समान प्रकाशित होने के लिए प्रातःकाल जाग उठते हैं. (२)
Those who grow with the sentences, hymns and mantras of the revered agni hymns wake up in the morning to be illuminated like the sun in the angel agni yagnas. (2)