ऋग्वेद (मंडल 3)
अश्वि॑ना मधु॒षुत्त॑मो यु॒वाकुः॒ सोम॒स्तं पा॑त॒मा ग॑तं दुरो॒णे । रथो॑ ह वां॒ भूरि॒ वर्पः॒ करि॑क्रत्सु॒ताव॑तो निष्कृ॒तमाग॑मिष्ठः ॥ (९)
हे अश्विनीकुमारो! मधुर-रस से युक्त सोमरस को पिओ एवं हमारे घर आओ. तुम्हारा अतिशय धन देने वाला रथ सोम निचोड़ने वाले यजमान के शुद्ध घर में बार-बार आता है. (९)
O Ashwinikumaro! Drink the somras containing sweet juice and come to our house. Your very wealthy chariot comes again and again in the pure house of the host who squeezes the mon. (9)