ऋग्वेद (मंडल 4)
स त्वं नो॑ अग्नेऽव॒मो भ॑वो॒ती नेदि॑ष्ठो अ॒स्या उ॒षसो॒ व्यु॑ष्टौ । अव॑ यक्ष्व नो॒ वरु॑णं॒ ररा॑णो वी॒हि मृ॑ळी॒कं सु॒हवो॑ न एधि ॥ (५)
हे अग्नि! तुम रक्षा करने के लिए एवं उषा की समाप्ति पर यज्ञकर्म के निमित्त हमारे अत्यंत समीप आओ. हे हमारे दिए हुए हव्य से प्रसन्न अग्नि! तुम वरुण द्वारा किए जाने वाले रोगों का नाश करो एवं यह सुखदायक हवि खाओ. हे हमारे द्वारा भली प्रकार बुलाए गए अग्नि! हमारे पास आओ. (५)
O agni! You come very close to us to protect and for the sake of yajnakarma at the end of Usha. O agni pleased with our promise! You must eliminate the diseases caused by Varuna and eat this soothing havi. O agni called by us! Come to us. (5)