हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.12.2

मंडल 4 → सूक्त 12 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 12
इ॒ध्मं यस्ते॑ ज॒भर॑च्छश्रमा॒णो म॒हो अ॑ग्ने॒ अनी॑क॒मा स॑प॒र्यन् । स इ॑धा॒नः प्रति॑ दो॒षामु॒षासं॒ पुष्य॑न्र॒यिं स॑चते॒ घ्नन्न॒मित्रा॑न् ॥ (२)
हे महान्‌ अग्नि! जो व्यक्ति तुम्हारे लिए ईधन लाता है तथा लकड़ी ढोने से थककर महान्‌ तेज की सेवा करता हुआ रात और दिन के समय तुम्हें प्रज्वलित करता है, वह संतान एवं पशुओं से पुष्ट होकर शत्रुओं का नाश करता हुआ धन प्राप्त करता है. (२)
O great agni! He who brings you fuel and, tired of carrying wood, burns you at night and in the daytime, serving the great radiance, he receives wealth, strengthened by children and animals, destroying the enemies. (2)