हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.15.1

मंडल 4 → सूक्त 15 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 15
अ॒ग्निर्होता॑ नो अध्व॒रे वा॒जी सन्परि॑ णीयते । दे॒वो दे॒वेषु॑ य॒ज्ञियः॑ ॥ (१)
देवों को बुलाने वाले, इंद्रादि देवों के मध्य तेजस्वी एवं यज्ञ के योग्य अग्नि शीघ्रगामी अश्च के समान हमारे यज्ञ में चारों ओर से लाए जाते हैं. (१)
The indradi, who call upon the gods, are brought from all sides in our yajna like the quick asa and the agni worthy of the yajna among the gods. (1)