हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.15.2

मंडल 4 → सूक्त 15 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 15
परि॑ त्रिवि॒ष्ट्य॑ध्व॒रं यात्य॒ग्नी र॒थीरि॑व । आ दे॒वेषु॒ प्रयो॒ दध॑त् ॥ (२)
यजमानों द्वारा इंद्रादि देवों को दिया गया हव्य धारण करते हुए अग्नि दिन में तीन बार रथ में बैठे पुरुष के समान चारों ओर से यज्ञ में जाते हैं. (२)
Wearing the havan given to the Indradi devas by the hosts, Agni goes to the yagna from all around like a man sitting in the chariot three times a day. (2)