हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.17.10

मंडल 4 → सूक्त 17 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 17
अ॒यं श‍ृ॑ण्वे॒ अध॒ जय॑न्नु॒त घ्नन्न॒यमु॒त प्र कृ॑णुते यु॒धा गाः । य॒दा स॒त्यं कृ॑णु॒ते म॒न्युमिन्द्रो॒ विश्वं॑ दृ॒ळ्हं भ॑यत॒ एज॑दस्मात् ॥ (१०)
यह सुना जाता है कि इंद्र शत्रुओं के विजेता एवं विनाशक हैं. यह युद्ध के द्वारा शत्रुओं को मारते हुए गाएं छीन लेते हैं. इंद्र जब वास्तव में क्रोध धारण करते हैं, तब समस्त स्थावर एवं जंगम डर जाता है. (१०)
It is heard that Indra is the conqueror and destroyer of the enemies. It takes away the cows while killing the enemies by war. When Indra really takes on anger, then all the real and movable is scared. (10)