हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.17.3

मंडल 4 → सूक्त 17 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 17
भि॒नद्गि॒रिं शव॑सा॒ वज्र॑मि॒ष्णन्ना॑विष्कृण्वा॒नः स॑हसा॒न ओजः॑ । वधी॑द्वृ॒त्रं वज्रे॑ण मन्दसा॒नः सर॒न्नापो॒ जव॑सा ह॒तवृ॑ष्णीः ॥ (३)
शत्रुओं को हराने वाले इंद्र ने अपना तेज प्रकाशित करते हुए वज्र चलाकर शक्ति द्वारा पर्वतों का भेदन किया. इंद्र ने सोमपान से प्रसन्न होकर वज्र द्वारा वृत्र राक्षस का वध किया वृत्र के वध के बाद जल वेग से बहने लगा. (३)
Indra, who defeated the enemies, illuminated his speed and pierced the mountains with power by wielding a thunderbolt. Indra, pleased with The Sompan, killed the demon Vritra by vajra. After the killing of Vrithra, the water started flowing at a fast pace. (3)