हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.3.2

मंडल 4 → सूक्त 3 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 3
अ॒यं योनि॑श्चकृ॒मा यं व॒यं ते॑ जा॒येव॒ पत्य॑ उश॒ती सु॒वासाः॑ । अ॒र्वा॒ची॒नः परि॑वीतो॒ नि षी॑दे॒मा उ॑ ते स्वपाक प्रती॒चीः ॥ (२)
हे अग्नि! जिस प्रकार पति की अभिलाषा करती हुई एवं शोभन वस्त्रों वाली पत्नी अपने समीप पति को स्थान देती है, उसी प्रकार हम तुम्हारे लिए उत्तर वेदी रूप स्थान निश्चित करते हैं. हे उत्तम कर्मो वाले अग्नि! तुम देवों से घिरे हुए हमारे सामने बैठो. समस्त स्तुतियां तुम्हारे सम्मुख होंगी. (२)
O agni! Just as a wife who desires her husband and has adornment robes places the husband next to her, so we fix the north altar form for you. O agni of the best deeds! You sit in front of us surrounded by gods. All praise will be in front of you. (2)