ऋग्वेद (मंडल 4)
कया॑ नश्चि॒त्र आ भु॑वदू॒ती स॒दावृ॑धः॒ सखा॑ । कया॒ शचि॑ष्ठया वृ॒ता ॥ (१)
सदा बढ़ते हुए, पूजनीय एवं मित्ररूप इंद्र किस तर्पण के कारण हमारे सामने आएंगे? वे किस विचारपूर्ण कर्म के कारण हमारे अभिमुख होंगे? (१)
For what reason will Indra, as ever-growing, revered and friendly, come before us? Because of what thoughtful deeds will they be facing us? (1)