ऋग्वेद (मंडल 4)
ये हरी॑ मे॒धयो॒क्था मद॑न्त॒ इन्द्रा॑य च॒क्रुः सु॒युजा॒ ये अश्वा॑ । ते रा॒यस्पोषं॒ द्रवि॑णान्य॒स्मे ध॒त्त ऋ॑भवः क्षेम॒यन्तो॒ न मि॒त्रम् ॥ (१०)
जिन ऋभुःओं ने अपनी बुद्धि एवं स्तुतियों द्वारा हरि नामक घोड़ों को प्रहर्षित किया, जिन्होंने उन सुंदर घोड़ों को इंद्र के लिए भली प्रकार से युक्त किया, वे ही ऋभुगण मित्र के समान हमारी मंगल कामना करते हुए हमें पुष्टि, अन्न एवं धन प्रदान करें. (१०)
The sages who, through their wisdom and praises, have made the horses called Hari famous, who have equipped those beautiful horses well for Indra, may they give us confirmation, food and money, wishing us good luck like a friend of the Sages. (10)