ऋग्वेद (मंडल 4)
अ॒हमिन्द्रो॒ वरु॑ण॒स्ते म॑हि॒त्वोर्वी ग॑भी॒रे रज॑सी सु॒मेके॑ । त्वष्टे॑व॒ विश्वा॒ भुव॑नानि वि॒द्वान्समै॑रयं॒ रोद॑सी धा॒रयं॑ च ॥ (३)
हम ही इंद्र और वरुण हैं. महत्ता के कारण विस्तृत, गंभीर एवं सुंदर रूप वाले धरती- आकाश भी हम हैं. विद्वान् हम त्वष्टा के समान समस्त प्राणियों को प्रेरणा देते हैं एवं धरती- आकाश को धारण करते हैं. (३)
We are the only Indra and Varuna. Due to the importance, we are also the earth-sky with a wide, serious and beautiful form. Scholars, we inspire all beings like a skin and hold the earth and the sky. (3)