ऋग्वेद (मंडल 4)
तमिन्न्वे॒३॒॑व स॑म॒ना स॑मा॒नम॒भि क्रत्वा॑ पुन॒ती धी॒तिर॑श्याः । स॒सस्य॒ चर्म॒न्नधि॒ चारु॒ पृश्ने॒रग्रे॑ रु॒प आरु॑पितं॒ जबा॑रु ॥ (७)
उपयुक्त एवं हमें पवित्र करने वाली स्तुति कर्म के साथ शीघ्र ही वैश्वानर के पास पहुंचे. वह स्तुति वैश्वानर अग्नि के दीप्तिमंडल पृथ्वी से निश्चित स्वर्गलोक के ऊपर घूमने के लिए देवों ने पूर्व दिशा में स्थापित की है. (७)
The appropriate and sanctifying praises of us soon reached the Vaishvanar with karma. That praise is set up by the devas in the east direction to revolve over the heavenly realm fixed from the deepest circle of the Vaishnavar agni from the earth. (7)