ऋग्वेद (मंडल 4)
सिन्धो॑रिव प्राध्व॒ने शू॑घ॒नासो॒ वात॑प्रमियः पतयन्ति य॒ह्वाः । घृ॒तस्य॒ धारा॑ अरु॒षो न वा॒जी काष्ठा॑ भि॒न्दन्नू॒र्मिभिः॒ पिन्व॑मानः ॥ (७)
नदी का जल जिस प्रकार निचले स्थान की ओर तेजी से बहता है, उसी प्रकार घी की धाराएं सीमा को पार करके आगे बढ़ती हैं. (७)
Just as the water of the river flows rapidly towards the lower point, similarly the streams of ghee cross the boundary and move forward. (7)