ऋग्वेद (मंडल 5)
प्र स॒द्यो अ॑ग्ने॒ अत्ये॑ष्य॒न्याना॒विर्यस्मै॒ चारु॑तमो ब॒भूथ॑ । ई॒ळेन्यो॑ वपु॒ष्यो॑ वि॒भावा॑ प्रि॒यो वि॒शामति॑थि॒र्मानु॑षीणाम् ॥ (९)
हे अग्नि! तुम यज्ञ को प्राप्त करके अपने अन्य तेजों को पराजित करते हुए उत्पन्न होते हो. तुम स्तुतियोग्य, दीप्तिकारक, उज्ज्वल, प्राणियों के प्रिय एवं मानवों के अतिथि हो. (९)
O agni! You are born by attaining the yajna defeating your other radiances. You are praiseworthy, radiant, bright, beloved of beings and guests of human beings. (9)